चराेर-ए-शरीफ़ की चीख
जब जल उठी वादियाँ, राख में बदल गया नूर,
जब ख़ामोश हो गया नंद ऋषि का हर इक सुर।
तब न इंसान बोले, न मज़हब ने रोया,
बस एक आग थी जिसने सब कुछ संजोया।
चराेर-ए-शरीफ़, वो रूहानी चमन,
जहाँ सुकून था, जहाँ इबादत का तन-मन।
मगर देखो ज़ालिमों के वो जलते हुए हाथ,
जो बुझा गए मोहब्बत की हर इक बात।
मस्त गुल के शैतानी खेल में,
रूहें तड़पीं, जले मकान और दिल के मेल में।
न इन्साफ़ मिला, न इंसानियत जागी,
बस सियासत के मोहरे थे, ख़ामोशी थी भागी।
जहाँ आदिलों को चीखना था,
वहाँ साजिशों ने पर्दा डाल दिया।
जहाँ इबादत के मसीहा थे,
वहाँ वहशत ने क़हर ढाल दिया।
पर ये कैसी दुनिया, ये कैसे हैं लोग?
जो छोटी बातों पर कर दें शोर।
राम की ज़मीन पर ऐतराज़ उठाएँ,
मगर ऋषि की मिट्टी को जलता ही पाएँ।
अदालत ने फ़ैसले दिए,
फिर भी नफ़रतों के दरवाज़े खुले।
पर चराेर-ए-शरीफ़ की आग पर,
क्यों सबके होंठ सिले?
ओ नंद ऋषि, तेरी आत्मा भटकती रहेगी,
जब तक इंसाफ़ की लौ जलती न रहेगी।
काश्मीर की वादियाँ आज भी पूछती हैं,
क्या सच में ये दुनिया इंसाफ़ की बनती है?
#islamophobiainindia #islamophobia #india #in #islam #quran #ummah #muslimindia #muslimah #islamindia #reunitemuslims #wakeupindianmuslims #imaam #emaan #indianmulims #readquran #azaan #islamicquotes #drisrarahmed #deobandi #urduquran #quranurdu #drisrar #ahlehadees #qurantranslation #allamaiqbalpoetry #barelvi #muslimsunite #allamaiqbal #ahlebait
---
চরারে শরীফের কান্না
পাহাড়ের কোলে, তুষারের বুকে,
জ্বলছিলো প্রদীপ নন্দ রুশির দুখে।
কাশ্মীরের মাটি, প্রেমের আকাশ,
সেই মন্দির-মসজিদে ছিলো না বিভাজ।
কিন্তু এল হিংস্র এক নেকড়ে,
আগুনে পোড়ালো ঐতিহ্যের ঢেউ।
নন্দ রুশির আশীর্বাদী ধূপ,
ভস্ম হলো ঘৃণার সেই অভিশাপে!
কই তারা, যাদের বিবেক জাগে?
যারা মিথ্যে বিতর্কে আগুন লাগায়!
বাবরি-জ্ঞানভাপী নিয়ে চিৎকার,
কিন্তু চরারের কান্না কেবল নিঃশব্দ চারিদার!
ধর্মের নামে এই হিংস্র খেলা,
মানবতার মৃত্যু, বিবেকের জ্বালা।
আকাশ কাঁদে, হিমালয় স্তব্ধ,
নন্দ রুশি আজ যেনো একা পড়ে থাকে!
নবীর মন্ত্রে ছিলো প্রেমের শিক্ষা,
হিন্দু-মুসলমান, সবার দীক্ষা।
তবু কেনো আগুন, কেনো এই ক্ষয়?
তবু কেনো সুবিচারের পথ হলো ক্ষয়?
কাঁদো কাশ্মীর, কাঁদো ইতিহাস,
চরারের শ্মশানে পড়ে রয়ে যায়।
যতদিন হিপোক্রেসি রাজত্ব করবে,
ততদিন মানবতা ছাইয়ে মিলিয়ে যাবে!
---
এই কবিতাটি শুধু চরারে শরীফের স্মৃতির প্রতি শ্রদ্ধাঞ্জলি নয়, বরং সমাজের সেই সমস্ত স্বঘোষিত বুদ্ধিজীবী ও নেতাদের প্রতি প্রশ্নও, যারা নির্দিষ্ট স্বার্থে ন্যায়-অন্যায় বিচার করেন।
Comments
Post a Comment